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In this research book, in view of the International Women's Year and then the Decade (1974-1985), an attempt has been made to look at the deteriorating picture of women from a different perspective. In this way it is also a comment on the socio-political culture of universalism of the time because the analysis of the unrecognized woman in any era serves as a comment on the whole society.  

In the subject-analysis of articles, editorials, essays, news, satires etc. published in Hindi newspapers in the last 10 years, the remarkable contribution of the era has been judged from this angle. 

Almost a century old Hindi journalism, which provided the background to these eleven years of journalism, and the studies of the faces of the women involved in it have also been the subject of this book.  

This book identifies the milestones of the journey in which the Hindi era played the role of making women visible from invisible in the light of International Women's Decade.

नेशनल बुक ट्र्स्ट,
नई दिल्ली,2009
National Book trust
New Delhi, 2009

“मीरां:मुक्ति की साधिका” में मीरा कांत ने भक्त कवयित्री मीरां बाई की पिष्ट पेषित रूढ़िवादी भक्त प्रवण छवि को तोड़कर उन्हे मुक्ति की साधिका के रूप मे स्थापित करने का सफल प्रयास किया है। स्त्री मुक्ति आंदोलन की उन्नायिका के रूप में भक्त कवयित्री के व्यक्तित्व का ताना-बाना बुनकर इन्होंने मध्यकालीन नारी मुक्ति संवेदना की थाह ली है। मीरा कांत द्वारा सम्पादित इस पुस्तक में मीरां बाई के अब तक उपलब्ध प्रामाणिक पदों को वर्गीकृत रूप में संकलित किया गया है।

साहित्य अकादेमी के तत्वावधान में 28 -30 अप्रैल 2012 में श्रीनगर ,कश्मीर में 'भारतीय साहित्य की संत कवयित्रियाँ ' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में ' मीरांबाई का काव्य : सत्ता के प्रति विद्रोह का आधार बीज ' नामक लेख प्रस्तुत  किया ।
 

Meeran Mukti ki sadhika_1.jpg
प्रकाशन विभाग,
भारत सरकार ,2002
Publication Division,
Govt.Of India, 2002
Lekhekaon ki drishti mein Mahadevi Verma_1.jpg

प्राय: रहस्यवादी घोषित की जाने वाली महादेवी वर्मा के प्रखर पत्रकार रूप को सामने लाने का भी मीरा कांत उद्यम कर रही हैं। उनका एक लम्बा शोधपरक लेख 'असंभव समय की आत्मसंभवा संपादिका: महादेवी वर्मा, एम. ए.’ नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा डा. चंद्रा सदायत के सम्पादन में प्रकाशित पुस्तक 'लेखिकाओं की दृष्टि में महादेवी वर्मा' का हिस्सा है।

Meera Kant in “Meeran: Mukti ki Sadhna” has made a successful attempt to establish Meera Bai, a devotee poetess, as a seeker of liberation by breaking the orthodox devotional desires of the devotee poetess Meera Bai. As the heroine of the women's liberation movement, weaving the fabric of the person of the devotee poet, she has fathom of medieval women's emancipation sentiments. In this book edited by Meera Kant, the authentic posts of Meera Bai given so far have been given in the form of letters.

Under the aegis of Sahitya Akademi, 'Saint poetesses of Indian literature' in Srinagar, Kashmir on 28-30 April 2012. In the national seminar organized on the topic ' Mirambai Kavya: The Seed of Rebellion Against Authority.

Meera Kant is also trying to make Mahadevi Verma, who is often declared a mystic, appear as an intense journalist. One of his protective cover articles 'Sambhava Samay ki Atma Sambhava Editor: Mahadevi Verma, M.A.' The book 'Lekhikaon ki Drishti Mein Mahadevi Verma' published by National Book Trust under the editorship of Dr. Chandra Sadayat  is part of.

RESEARCH

क्लासिकल पब्लिशिंग कम्पनी,
नई दिल्ली,1994
Classical Publishing Company
New Delhi, 1994

इस खोज-ग्रन्थ में अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष और फिर दशक (1974-1985) के दृश्य में स्त्री की निर्मिति-बिगड़ती तस्वीर को कुछ हटकर, कुछ रूख अलग-अलग देखने का प्रयास किया गया है। इस रूप में यह इस समय की सार्वभौमिकता की सामाजिक-राजनीतिक संस्कृति पर भी एक टिप्पणी है क्योंकि किसी भी युग में स्त्री के अपरिचित के विश्लेषण पूरे समाज पर एक टिप्पणी का काम करते हैं। 

हिन्दी के पत्र-पत्र में पिछले 10 वर्षों में प्रकाशित लेख, सम्पादकीयों, निबंधों, समाचारों, व्यग्रता-चित्रों आदि के विषय-विश्लेषण में इसी कोण से युग के उल्लेखनीय योगदान को आंका गया है। 

इन ग्यारह वर्षों के सत्र को पृष्ठाधार प्रदान करने वाला लगभग एक शताब्दी पुराना हिन्दी सत्र और इसमें शामिल महिलाओं के चेहरे के अध्ययन भी इस पुस्तक का विषय रहे हैं।  

यह किताब उस यात्रा के मील के निशान से पहचान कराती है जिसमें हिंदी दौर ने अंतरराष्ट्रीय महिला दशक के आलोक में महिला को अगोचर से गोचर बनाने की भूमिका निभाई थी।

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